वासुदेव शरण अग्रवाल भारतीय संस्कृति, पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के प्रकांड पंडित एवं अन्वेषक थे| इनके मन में भारतीय संस्कृति को वैज्ञानिक अनुसंधान की दृष्टि में प्रकाश में लाने की उत्कृष्ट इच्छा थी|
वासुदेव अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 ई. में मेरठ जनपद के खेड़ा नामक ग्राम में हुआ था| इनके पिता का नाम विष्णु अग्रवाल तथा माता का नाम सीता देवी अग्रवाल था| इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे| अतः इनका बचपन लखनऊ में बिता| सन 1929 ई. में लखनऊ विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया| उसके बाद इन्होंने मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे| सन 1941 ई. में इन्होंने पी-एच.डी. तथा 1946 ई. में डि.लीट. की उपाधि प्राप्त की| उन्होंने `पाणिनिकालीन भारत’ विषय पर शोध किया| सन 1951 ई. में ये काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी (भारती महाविद्यालय) में प्रोफेसर नियुक्त हुए| 1952 ई. में लखनऊ विश्वविद्यालय में राधा मुखर्जी व्याख्यान-निधि की ओर से व्याख्याता नियुक्त हुए थे| व्याख्यान का विषय `पाणिनि’ था| अग्रवाल जी भारतीय मुद्रा परिषद (नागपुर) भारतीय संग्रहालय परिषद (पटना) तथा ऑल इंडिया ओरिएंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन (मुंबई) आदि संस्थाओं के सभापति पद भी रह चुके हैं| अग्रवाल जी ने पाली, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्व का गहन अध्ययन किया था| सन 1967 ई. में हिंदी के इस साहित्यकार का निधन हो गया|
वासुदेव अग्रवाल भारतीय संस्कृति, पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के प्रकांड पंडित एवं अन्वेषक थे| इनके मन में भारतीय संस्कृति को वैज्ञानिक अनुसंधान की दृष्टि में प्रकाश में लाने की उत्कृष्ट इच्छा थी| अंत इन्होंने उत्कृष्ट कोटि के अनुसंधानतमक निबंधों की रचना की| वासुदेव शरण अग्रवाल के अधिकांश निबंध प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति से संबंध है| इन्होंने अपने निबंधों में प्रागैतिहासिक, वैदिक एवं पौराणिक धर्म का उद्घाटन किया| निबंध के आंतरिक इन्होंने पाली, प्राकृत और संस्कृत के अनेक ग्रंथों का संपादन और पाठ-शोधन का कार्य किया| जायसी की `पद्मावत’ पर इनकी टीका सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है|
इन्होंने बाणभट्ट के `हर्षचरित’ का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया और प्राचीन महापुरुषों —- श्रीकृष्ण, वाल्मीकि, मनु आदि का आधुनिक दृष्टि से बुद्धिसम्मत चरित्र प्रस्तुत किया| हिंदी-साहित्य के इतिहास में अपनी मौलिकता, विचारशीलता और विद्वता के लिए यह याद रहेंगे|
कल्पवृक्ष, पृथ्वीपुत्र, भारत की एकता, मातृभूमि इनकी प्रमुख कृतियां है| इन्होंने वैदिक साहित्य, दर्शन, पुराण और महाभारत पर अनेक लेख लिखे हैं| जायसी कृत्य `पद्मावत’ संजीवनी व्याख्या और बाणभट्ट के `हर्षचरित’ का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करके इन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया है| इसके अतिरिक्त इनकी लिखी और संपादित पुस्तके है —- उरूज्योति, कला और संस्कृति, कादंबरी, अभिनंदन ग्रंथ आदि|
इनके मुख्यत इतिहास, पुराण, धर्म एवं संस्कृति के क्षेत्रों से शब्दों का चयन किया है| और शब्दों को उनके मूल अर्थ में प्रस्तुत किया है| संस्कृतनिष्ठता के कारण कही-कही वह दुरुह हो गई है| इनकी भाषा में देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है| उनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों, मुहावरों, कहावतों का अभाव दिखाई पड़ता है| इनकी मौलिक रचनाओं में संस्कृत की सामायिक शैली की प्रमुखता है तथा भाषाओं में व्यास शैली की|
वासुदेवशरण अग्रवाल की शैली पर एक गंभीर व्यक्तित्व की गहरी छाप है| ये एक गंभीर अध्येता और चिंतक रहे हैं| इनके व्यक्तित्व का निर्माण एक सचेत शोधकर्ता, विवेकशील विचारक तथा एक सहृदय कवि के योग से हुआ है| सामान्यता वासुदेवशरण अग्रवाल के निबंध विचारात्मक शैली में ही लिखे गए हैं| अपने निबंधों में निर्णय की पुष्टि के लिए उद्धरणों का प्रस्तुत करना इनका सहज स्वभाव रहा है| इसलिए उद्धरण-बहुलता इनकी निबंध शैली की विशेषता बन गई है|
डॉ अग्रवाल ने निबंध, शोध एवं संपादक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया| इनकी प्रमुख रचनाओं का विवरण इस प्रकार है —
• शोध प्रबंध
1) पाणिनिकालीन भारतवर्ष
• आलोचना-ग्रंथ
1) पद्मावत की संजीवनी व्याख्या तथा
2) हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन
• संपादन
1)पाली, प्राकृतिक और संस्कृत के एकाधिक ग्रंथों का
• निबंध – संग्रह
1) कल्पलता
2) कला और संस्कृति
3) कल्पवृक्ष
4) भारत की एकता
5) वाग्धारा
6) पृथ्वीपुत्र — `राष्ट्र का स्वरूप’ इनके `पृथ्वीपुत्र’ नामक निबंध संग्रह से लिया गया है| इस निबंध में लेखक ने यह बताया है कि राष्ट्र का स्वरूप तीन तत्वों से मिलकर बनता है| यह तीन तत्व है – पृथ्वी, जन और संस्कृति| पृथ्वी को माता के रूप में मानना और स्वयं को पृथ्वी का पुत्र मानना राष्ट्रीयता की भावना के उदय के लिए आवश्यक है| राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन का दृढ़ संबंध होना चाहिए| इसके साथ-साथ संस्कृति के विषय में भी लेखक ने मार्मिक विचार प्रकट किए हैं | लेखक के अनुसार सहृदय व्यक्ति प्रत्येक संस्कृति के आनंद पक्ष को स्वीकार करता है| और उससे आनंदित हो उठता है|
वासुदेव शरण अग्रवाल हिंदी लेखक संपादन के साथ-साथ अंग्रेजी संपादन का कार्य भी किए थे जिसका विवरण इस प्रकार है|
• वाराणसी सील और सीलिंग (Varanasi Sealing and Sealing)
• लंबे अंधेरे में दृष्टि (long dark vision)
• सृजन का भजन (नासदिया सूक्त) (hymn of creation)
• हर्ष के कर्म (deeds of joy)
• भारतीय कला (Indian Art)
• प्राचीन भारतीय लोक पंथ (ancient Indian folk cult)
• मथुरा मूर्तिकला की उत्कृष्ट कृतियाँ (Masterpieces of Mathura Sculpture)
• भारत – एक राष्ट्र (India-A nation)
• हिंदू मंदिर और अन्य निबंधों का विकास (The Evolution of the Hindu Temple and Other Essays)
• एक संग्रहालय अध्ययन (a museum study)
• वैदिक व्याख्यान (Vedic lectures)
वासुदेव शरण अग्रवाल हिंदी लेखक संपादन के साथ-साथ अंग्रेजी संपादन का कार्य भी किए थे जिसका विवरण इस प्रकार है
वासुदेवशरण अग्रवाल भारतीय संस्कृति और पुरातत्व के विद्वान थे| इनका निबंध-साहित्य अत्यधिक समृद्ध है| पुरातत्व और अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी समता कोई नहीं कर सकता| विचार-प्रधान निबंधों के क्षेत्र में तो इनका योगदान सर्वथा अविस्मरणीय है| निश्चित ही हिंदी-साहित्य में इनका मूर्धन्य स्थान है|
1. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म कहां हुआ था?
वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म सन 1904 में मेरठ जनपद के क्षेरा नामक ग्राम में हुआ था|
2. वासुदेव शरण अग्रवाल किस युग के लेखक है?
वासुदेवशरण अग्रवाल जी आधुनिक युग के लेखक हैं|
3. वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली?
वासुदेवशरण अग्रवाल की शैली विचारात्मक, गवेषणात्मक और व्याख्यात्मक है|
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