प्रोफ़ेसर सुंदर रेड्डी का जन्म सन 1919 ई. आंध्र प्रदेश में हुआ था| प्रोफ़ेसर सुंदर रेड्डी के पिता का नाम कृष्णा रेड्डी तथा माता का नाम खुशी रेड्डी था| यह श्रेष्ठ विचारक, समालोचक एवं निबंधकार थे| इनका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यंत प्रभावशाली था| कई वर्षों तक यह आंध्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे हैं| ये वहां के स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग के अध्यक्ष एवं को केसर भी रहे हैं| इनके निर्देशन में हिंदी और तेलुगु साहित्य के विविध प्रश्नों के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध कार्य भी हुआ है| प्रोफेसर सुंदर रेड्डी का निधन सन 2005 ई. में हो गया|
प्रोफेसर सुंदर रेड्डी का हिंदी साहित्य-सेवा साधना एवं निष्ठा सराहनीय हैं| तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम के साहित्य और इतिहास का क्षेत्र में विवेचन करने के साथ-साथ हिंदी भाषा और साहित्य से भी उनकी तुलना करने में ये पर्याप्त रूचि लेते रहे हैं| हिंदी वाले प्रदेश के निवासी होते हुए भी प्रोफ़ेसर सुंदर रेड्डी ने हिंदी भाषा पर अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया था| इनकी भाषा परिमार्जित तथा सशक्त थी| और शैली विषय के अनुसार ढल जाती थी| भाषा को संपन्न बनाने के लिए इन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है| इनकी शैली के विवेचनात्मक, प्रश्ननात्मक, आलोचनात्मक आदि रूप दिखाई पड़ते हैं| कठिन-से-कठिन विषय को सरल एवं सुबोध ढंग से प्रस्तुत करना इनकी अपनी विशेषताएं हैं| प्रोफेसर रेड्डी से हिंदी साहित्य को बड़ी आशाएं रही है|
अब तक रेड्डी जी के आठ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं| जो इस प्रकार है —
1) साहित्य और समाज
2) मेरे विचार
3) वैचारिकी, शोध और बोध
4) वेलुगु दारूल (तेलुगु भाषा में)
5) लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इंडिया
6) हिंदी और तेलुगु : एक तुलनात्मक अध्ययन
7) दक्षिण की भाषाएं और उनका साहित्य
(संपादित अंग्रेजी ग्रंथ) आदि कृतियों से साहित्य संसार सुपरिचित है| इनके अतिरिक्त हिंदी, तेलुगु तथा अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में कई निबंध प्रकाशित हुए हैं | इनके प्रत्येक निबंध में इनका मानवतावादी दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है|
इसमें रेड्डी जी ने दोनों साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियां तथा प्रमुख साहित्यकारों का अध्ययन प्रस्तुत किया है| इस कृति की उपादेयता के संबंध में उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल डॉ. वि. गोपाल रेड्डी जी ने लिखा है, “ये ग्रंथ तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र का पथ प्रदर्शक है|
इसमें उन्होंने दक्षिण भारत के चारों भाषाओं (तेलुगु, कन्नड़, तमिल तथा मलयालम) तथा उनके साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करते हुए उनकी आधुनिक गतिविधियों का सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया है| सभी ग्रंथों में इनकी भाषा-शैली भाव और विषय के सर्वदा अनुकूल बन पड़ी है| जिसमें इनका साहित्यिक व्यक्तित्व पूर्ण रूप से मुखरित हुआ है|
इसमें सुंदर रेड्डी जी ने साहित्य और समाज का हमारे जीवन में पड़ने वाले प्रभाव और दुष्प्रभाव के बारे में विस्तार रूप से बताया है|
इसमें लेखक अपने जीवन के अनुभव को बताया है कि वह अपने जीवन में किन किन परिस्थितियों का सामना किया है और अपने अनुभव से उस परिस्थिति से निजात पाया है
भाषा की समस्याओं पर विद्वान ने बहुत लिखा है परंतु `भाषा और आधुनिकता’ पर विशेष रूप से नहीं लिखा गया| विद्वान लेखक ने वैज्ञानिक दृष्टि से भाषा और आधुनिकता पर विचार किया है| भाषा परिवर्तनशील होती है इसका इतना ही अर्थ है कि भाषा में नए भाव, नए शब्द, नए मुहावरे तथा लोकोक्तियां नई नीतियां सदैव आती रहती है| इन सब का प्रयोग ही भाषा को व्यवहारिकता प्रदान करता हुआ भाषा में आधुनिकता लाता है| विद्वान लेखक का मत है कि हमें वैज्ञानिक शब्दावली का जो का ते लेना चाहिए व्यवहारिकता की दृष्टि से प्रोफेसर रेड्डी का यह सुझाव विचारणीय है|
• लेखक – प्रोफेसर सुंदर रेड्डी
• जन्म – सन 1919 ई.
• जन्म स्थान – आंध्र प्रदेश
• आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष
• व्यक्तित्व – प्रभावशाली
• प्रारंभिक शिक्षा – संस्कृत एवं तेलुगु से
• लेखन विधा – हिंदी और तेलुगु भाषा साहित्य
• भाषा – विषय और भाव के अनुरूप
• शैली – विवेचनात्मक, आलोचनात्मक
• प्रमुख रचनाएं – साहित्य और समाज, मेरे विचार, दक्षिण की भाषाएं और उनका साहित्य,
• मृत्यु – सन 2005 ई.
प्रोफ़ेसर सुंदर रेड्डी के पिता का नाम कृष्णा रेड्डी तथा इनके माता का नाम खुशी रेड्डी था|
अब तक रेड्डी जी के आठ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं| इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है –
साहित्य और समाज, मेरे विचार, वैचारिकी, शोध और बोध, वेलुगु दारूल (तेलुगु भाषा में), लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इंडिया, हिंदी और तेलुगु : एक तुलनात्मक अध्ययन, दक्षिण की भाषाएं और उनका साहित्य|
इनकी मृत्यु सन 2005 ई. में हुई|
अब तक प्रोफ़ेसर सुंदर रेड्डी जी के आठ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं|
साहित्य और समाज, मेरे विचार, वैचारिकी, शोध और बोध, वेलुगु दारूल (तेलुगु भाषा में), लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इंडिया, हिंदी और तेलुगु : एक तुलनात्मक अध्ययन, दक्षिण की भाषाएं और उनका साहित्य|
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