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भारतेंदु हरिश्चंद्र – जीवन परिचय, कविताएं एवं रचनाएं

आधुनिक हिंदी साहित्य के जन्मदाता एवं भारतीय नवोत्थान के प्रतीक भारतेंदु हरिश्चंद्र 18-19वीं शताब्दी के जगत सेठ के एक प्रसिद्ध परिवार के वंशज थे| इनके पूर्वज सेठ अमीचंद का उत्कर्ष भारत में अंग्रेजी राज्य के स्थापना के समय हुआ था| उन्हीं के प्रपुत्र गोपालचंद्र `गिरिधरदास’ के जेठ पुत्र भारतेंदु हरिश्चंद्र थे| 

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय | bharatendu harishchandra ka jeevan parichay

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर, सन 1850 ई, को इनके ननिहाल में हुआ था| हरिश्चन्द्र के पिता का नाम गोपाल चंद गिरिधरदास था तथा माता का नाम पार्वती देवी था| जब ये 5 वर्ष के थे तब माता पार्वती देवी तथा 10 वर्ष के थे तब इनके पिता का निधन हो गया| विमाता मोहन बीवी का इन पर विशेष प्रेम न होने के कारण इनके पालन-पोषण का भार कालीकदमा दाई तथा तिलकधारी नौकर पर रहा|

किंतु पिता के असामयिक मृत्यु के बाद इनकी शिक्षा-दीक्षा का समुचित प्रबंध न हो सका  इन्होंने क्वींस कॉलेज, वाराणसी में प्रवेश लिया, किंतु वहां भी मन न रामा| ये कुशाग्र बुद्धि और तीव्र स्मरणशक्ति वाले थे| कॉलेज छोड़ने के बाद इन्होंने स्वाध्याय से हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी के अतिरिक्त बंगला, गुजराती, मराठी, मारवाड़ी, पंजाबी, उर्दू आदि भारतीय भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया| 13 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह काशी के रईस लालगुलाब राय की पुत्री मन्ना देवी से हुआ| इनके दो पुत्र और एक पुत्री थे, किंतु पुत्रों का बाल्यावस्था में ही निधन हो गया| हरिश्चन्द्र की पुत्री विद्यावती सुशिक्षिता थी| भारतेंदु जी को ऋण लेने की आदत पड़ गई थी| 1884 ई. में इनकी बलिया यात्रा एक प्रकार से अंतिम यात्रा थी| बलिया से लौटने के दौरान पारिवारिक तथा अन्य सांसारिक चिंता तथा क्षय-रोग से ग्रस्त होने के कारण 6 जनवरी, 1885 ई. को 34 वर्ष 4 महीने की अवस्था में भारतेंदु जी का देहांत हो गया|

भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों की ही एकसाथ कृपा थी| इनकी मित्र मंडली में जहां इनके समय के सभी लेखक, कवि एवं विसरोवर  थे, वही बड़े-बड़े राजा-महाराजा, रईस और सेठ-साहूकार भी थे| ये लड़कपन से ही परम उदार थे| इन्हें हिंदी के प्रति अटूट प्रेम था| इन्होंने अपनी विपुल धनराशि को राजसी जीवन, दान, परोपकार, संस्थाओं को मुफ्त में चंदा तथा हिंदी के साहित्यकारों की सहायता आदि पर व्यय कर दिया| हिंदी साहित्य मंडली में पंडित बद्रीनारायण चौधरी `प्रेमघन’, पंडित रबालकृष्ण भट्ट तथा पंडित प्रतापनारायण मिश्र आदि मशहूर विद्वान सम्मिलित थे|

देश के प्रसिद्ध विद्वानजनों ने ही इन्हें भारतेंदु की उपाधि दी थी| भारतेंदु हरिश्चंद्र वास्तव में भारतेंदु ही थे| इनकी कृति कौमुदी इनके जीवनकाल में ही चतुर्दिक हो चुकी थी|

उन्होंने हिंदी को तत्कालीन विद्यालयों के पाठक्रम में स्थान दिलाने का प्रयत्न किया| स्वयं लिखकर तथा अपने मित्रों और

आश्रितो से अनुरोधपूर्वक लिखवाकर हिंदी साहित्य का भंडार भरा| उन्होंने अपने नाटक लिखे जिनका सफल अभिनय किया गया| 

भारतेन्दु जी के समय देश के मध्ययुगीन पौराणिक जीवन जीवन में लिप्त तथा पतित था| नवीन ऐतिहासिक कारणों से विशेष नवीन शिक्षा और वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरुप हिंदी प्रदेश में नवयुग का अवतारण हुई| और लेखकों में विस्तार-स्वतंत्रता का जन्म हुआ| ये नवयुग के अग्रदूत और हिंदी साहित्य में आधुनिकता के जन्मदाता थे|

भारतेंदु की रचनाएं देश-प्रेम से ओत-प्रोत है| भारतवासियों की परस्पर फूट और अभारतीयता इन्हें बहुत खटकती थी|

भारतेन्दु जी ने हिंदी गद्य का सूत्रपात किया, साहित्य-क्षेत्र की समस्त पुरानी एवं नवीन विधाओं में रचना करके हिंदी साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाया| उन्होंने लगभग 72 छोटे-बड़े ग्रंथों का प्रणयन करके हिंदी का प्रचार और प्रसार करते करते हुए हिंदी जगत में अपने लिए सदा के लिए स्थाई स्थान बना लिया|

पंत जी के शब्दों में —

”भारतेंदु कर गए भारती की वीणा निर्माण||
किया अमर स्पर्श ने जिसका बहुबिधि स्वर संधान||”

सच बात तो यह है कि यह प्रेमी जीव थे| भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी संवेदनशील पर दुखतकातर और कोमल ह्रदय थे| अपनी इन्हीं गुणों के कारण जीवन-भर आर्थिक कष्ट सहन किया| लोग इन्हें `अजातशत्रु’ कहते थे| इनका साहित्य अनुराग देश-विदेश में प्रसिद्ध था|

भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएँ

भारतेंदु हरिश्चंद्र अनेक भारतीय भाषाओं में कविता करते थे परंतु ब्रजभाषा पर इनका असाधारण अधिकार था, जिसमें श्रृंगार रचना करने में ये परिपूर्ण थे| केवल प्रेम को लेकर ही इनकी रचनाओं के सात संग्रह प्रकाशित हुए, जिनके नाम- ` प्रेम फुलवारी’, ` प्रेम-प्रलाप’, `प्रेमाशु-वर्णन’, प्रेम-माधुरी’, `प्रेम-मालिका’, `प्रेम-तरंग’, तथा प्रेम-सरोवर हैं| यह समस्यापूर्ति का युग था| जिसके अभ्यास ने इन्हें आशु कवि बना दिया था| भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी को यात्राओं का भी शौक था| 

भाषा-शैली

यद्यपि भारतेंदु जी खड़ी बोली गद्य के जनक माने जाते हैं परन्तु इनका खड़ी बोली एवं ब्रजभाषा दोनों पर समान कार था, इन्होंने ब्रजभाषा में ही कविताएँ लिखीं हैं। ब्रजभाषा का रूढ़िमुक्त रूप भारतेन्दु जी ने अपनाया। लोकोक्तियों और मुहावरों का भी प्रयोग इन्होंने अनोखे ढंग से किया है और भाषा को प्रवाहयुक्त व जनोपयोगी बनाया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्य रूप में मुक्तक शैली को अपनाया तथा उसमें नवीन प्रयोग करके उसे भावानुकूल भी बनाया है। इन्होंने मुख्य रूप से कवित्त, कुण्डलिया, सवैया, छप्पय दोहा आदि छन्दों को अपनाया है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की विस्तार में रचनाएं

मौलिक नाटक

1) वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

2) सत्य हरिश्चंद्र 

3) श्री चंद्रावली 

4) भारत दुर्दशा 

5) नीलदेवी 

6) अंधेरी नगरी 

7) विषस्य विषमौषधम् 

8) प्रेम जोगनी 

9) सती प्रताप

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का निबंध संग्रह

1) नाटक 

2) कश्मीरी कुसुम 

3) कालचक्र 

4) लेवी प्राण लेवी

5) भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?

6) जातीय संगम 

7) हिंदी भाषा 

8)  संगीत सार 

9) स्वर्ग में विचार सभा

पुरातत्व संबंधी निबंध

1) रामायण का समय 

2) काशी 

कला संबंधी निबंध

1) संगीत सार 

2) जातीय संगीत 

इतिहास संबंधी निबंध

1) कश्मीरी कुसुम 

2) बादशाह दर्पण 

विचारात्मक निबंध

1) नाटकों का इतिहास

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की नाटक रचनाएं

1) विद्या सुंदर

2) धनंजय विजय 

3) भारत जननी

4) मुद्राराक्षस

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की काव्य कृतियां

1) प्रेम मालिका

2) कार्तिक स्नान 

3) प्रेम सरोवर

4) प्रेम माधुरी 

5) प्रेम तरंग 

6) प्रेमा प्रलाप 

7) होली 

8) वर्षा विनोद 

9) प्रेम फुलवारी 

10) कृष्ण चरित्र

11) विनय प्रेम पचासा

12) प्रातः स्मरण 

13) दानलीला

14) संस्कृत लावणी 

15) बंदर सभा 

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कहानी

1) अद्भुत अपूर्व स्वप्न

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की यात्रा रचनाएं

1) लखनऊ 

2) सरयूपार की यात्रा

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का उपन्यास

1) चंद्रप्रभा 

2) पूर्ण  प्रकाश 

भारतेन्दु की कविताएं

1) रोअहूं सब मिलिकै 

2) चूरन का लटका 

3) गंगा-वर्णन 

4) मुकरियाँ 

5) परदे में क़ैद औरत की गुहार 

6) हरी हुई सब भूमि 

7) ऊधो जो अनेक मन होते 

8) चने का लटका

संक्षिप्त परिचय

  • लेखक का नाम – भारतेंदु हरिश्चंद्र
  • जन्म – 9 सितंबर, सन 1850 ई,
  • जन्म स्थान – काशी (उत्तर प्रदेश)
  • पिता – गोपालचंद्र `गिरिधरदास’
  • माता – पार्वती देवी
  • पत्नी – पन्ना देवी
  • भारतेंदु युग के प्रवर्तक
  • शिक्षा – स्वाध्याय के द्वारा विभिन्न भाषाओं का ज्ञान अर्जन
  • संपादन – कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र पत्रिका,  हरिश्चंद्र चंद्रिका
  • लेखन विधा – कविता, नाटक, एकांकी, निबंध, उपन्यास, पत्रकारिता,
  • भाषा – इनकी भाषा ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली
  • शैली – मुक्तक
  • प्रमुख रचनाएं – प्रेम माधुरी, प्रेम तरंग, प्रेम प्रलाप, प्रेम सरोवर, कृष्ण चरित्र,

FAQ

भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताएं

1) रोअहूं सब मिलिकै 

2) चूरन का लटका 

3) गंगा-वर्णन 

4) मुकरियाँ 

5) परदे में क़ैद औरत की गुहार 

6) हरी हुई सब भूमि 

7) ऊधो जो अनेक मन होते 

8) चने का लटका

2. भारतेंदु हरिश्चंद्र के मौलिक नाटक

उनके मौलिक नाटक का विवरण इस प्रकार है –

1) वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

2) सत्य हरिश्चंद्र 

3) श्री चंद्रावली 

4) भारत दुर्दशा 

5) नीलदेवी 

6) अंधेरी नगरी 

7) विषस्य विषमौषधम् 

8) प्रेम जोगनी 

9) सती प्रताप

3. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म कहां हुआ था

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर, सन 1850 ई, को इनके ननिहाल में हुआ था|

4. भारतेंदु का वास्तविक नाम क्या है

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म जन्म 9 सितंबर, सन 1850 ई, को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था इनका वास्तविक नाम `हरिश्चंद्र’ था|

• मृत्यु – 6 जनवरी, 1850 ई.

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