मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी काव्य जगत के महान कवि थे| इनकी प्रारम्भिक रचनाएँ कलकत्ता (कोलकाता) से प्रकाशित होती थी| इस प्रकाशित पुस्तिका का नाम ‘वैश्योपकारक’ था| द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने के बाद इनकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ पत्रिका में भी प्रकाशित होने लगीं| सन् 1909 ई. में इनकी सर्वप्रथम पुस्तक ‘रंग में भंग’ का प्रकाशन हुआ| इसके बाद 1912 ई. में दूसरी प्रकाशन पुस्तक ‘भारत भारती’ के प्रकाशित होने से इन्हें ख्याति प्राप्त हुई| ‘साकेत’ नामक महाकाव्य से इनकी काव्य प्रतिभा का परिचय हिन्दी जगत को पता चला| मैथिलीशरण गुप्त ने अनेक महान कृतियों का सृजन कर सम्पूर्ण हिन्दी-साहित्य – जगत् को आश्चर्यचकित कर दिया। खड़ीबोली हिन्दी के स्वरूप-निर्धारण और उसके विकास में इन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है|
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगाँव झाँसी जिला स्थित चिरगाँव नामक गांव में 3 अगस्त, सन् 1886 ई0 में हुआ था| इनके पिता का नाम प्रेम गुप्ता तथा माता का नाम काशीबाई गुप्ता था| काव्य-रचना की ओर छोटी अवस्था से ही इनका झुकाव था| आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने हिन्दी काव्य की नवीन धारा को पुष्ट कर उसमें अपना विशेष स्थान बना लिए थे| इनकी कविताओ में देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम की प्रमुख विशेषता होने के कारण इन्हें हिंदी-साहित्य ने ‘राष्ट्रकवि’ का सम्मान दिया| राष्ट्रपति ने इन्हें संसद् सदस्य मनोनीत किया| इस महान कवि की मृत्यु 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई० मे हो गई|
मैथिलीशरण गुप्त की रचना-संग्रह विशाल है| इनकी विशेष ख्याति रामचरित पर आधारित महाकाव्य ‘साकेत’ के कारण प्राप्त हुई है| ‘जयद्रथ वध’, ‘द्वापर’, ‘अनघ’, ‘पंचवटी’, ‘सिद्धराज’, ‘भारत-भारती’, ‘यशोधरा’ आदि गुप्तजी की अनेक प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं| ‘यशोधरा’ एक चम्पूकाव्य कृति है| जिसमें गुप्त जी ने महान महात्मा बद्ध के चरित्र का वर्णन किया है|
मैथिलीशरण गुप्त जी का पहला काव्य-संग्रह ‘भारत-भारती’ था, जिसमें भारत की दुर्दशा एवं भ्रष्टाचार का वर्णन हुआ है| माइकेल मधुसूदन की वीरांगना, मेघनाद-वध, विरहिणी ब्रजांगना, और नवीन चन्द्र के पलाशीर युद्ध का इन्होंने विस्तृत अनुवाद किये हैं| देश कालानुसार बदलती भावनाओं तथा विचारों को भी अपनी रचना में स्थान देने की इनमें क्षमता है| छायावाद के आगमन के साथ गुप्तजी की कविता में भी लाक्षणिक वैचित्र्य और मनोभावों की सूक्ष्मता की मार्मिकता आयी| गीति काव्य की ओर मैथिलीशरण गुप्त का झुकाव रहा है| प्रबन्ध के भीतर ही गीति-काव्य का समावेश करके गुप्तजी ने भाव-सौन्दर्य के मार्मिक स्थलों से परिपूर्ण ‘यशोधरा’ और ‘साकेत’ जैसे उत्कृष्ट काव्य-कृतियों का सृजन किया| गुप्तजी के काव्य की यह प्रमुख विशेषता रही है कि गीति काव्य के तत्त्वों को अपनाने के कारण उसमें सरसता आयी है, पर प्रबन्ध की धारा की भी उपेक्षा नहीं हुई| गुप्तजी के कवित्व के विकास के साथ इनकी भाषा का बहुत परिमार्जन हुआ। उसमें धीरे-धीरे लाक्षणिकता, संगीत और लय के तत्त्वों का प्राधान्य हो गया|
देश-प्रेम मैथिलीशरण गुप्त की कविता का प्रमुख स्वर है| ‘भारत-भारती’ में प्राचीन भारत के संस्कृति का प्रेरणादायक चित्रण किया है| इस रचना में व्यक्त देश-प्रेम ही इनकी परवर्ती रचनाओं में देश-प्रेम और नवीन राष्ट्रीय भावनाओं में परिपूर्ण हो गया| इनकी कविता में वर्तमान की समस्याओं और विचारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं| गाँधीवाद तथा कहीं-कहीं आर्य समाज का प्रभाव भी उन पर पड़ा है| अपने काव्यों की कथावस्तु गुप्तजी ने वर्तमान जीवन से न लेकर प्राचीन इतिहास अथवा पुराणों से ली है| ये अतीत की गौरव-गाथाओं को वर्तमान जीवन के लिए मानवतावादी एवं नैतिक प्रेरणा देने के उद्देश्य से ही अपनाते हैं|
मैथिलीशरण गुप्त की चरित्र कल्पना में कहीं भी अलौकिकता शक्तियों के लिए स्थान नहीं है| इनके सारे चरित्र मानव ही होते हैं, उनमें देवता और राक्षस नहीं होते हैं| इनके राम, कृष्ण, गौतम आदि सभी प्राचीन और चिरकाल से हमारे महान पुरुष पात्र हैं, इसीलिए वे जीवन प्रेरणा और स्फूर्ति प्रदान करते हैं। ‘साकेत’ के राम ‘ईश्वर’ होते हुए भी तुलसी की भाँति ‘आराध्य’ नहीं, हमारे ही बीच के एक व्यक्ति हैं|
नारी के प्रति मैथिलीशरण गुप्त का हृदय सहानुभूति और करुणा से आप्लावित है| ‘यशोधरा’, ‘उर्मिला’, ‘कैकेयी’, ‘विधृता’, ‘रानकदे’ आदि नारियाँ गुप्तजी की महत्त्वपूर्ण सृष्टि हैं| ‘साकेत’ में उर्मिला तथा ‘यशोधरा’ में गौतम-पत्नी यशोधरा को भारतीय नारी-जीवन के आदर्श की प्रतिमाएँ बताते हुए उनकी त्याग-भावना एवं करुणा को बड़े ही सरल एवं सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है| इनकी निम्न दो पंक्तियाँ हिन्दी काव्य की अमर निधि हैं-
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी|
आँचल में है दूध और आँखों में पानी |
इनकी भाव-व्यंजना में हमेशा ही जीवन की गम्भीर अनुभूति के दर्शन होते हैं| इन्होंने कल्पना का सहारा तो लिया है, पर इनके भाव कहीं भी मानव की स्वाभाविकता का अतिक्रमण नहीं करते| इनके काव्य में सीधी और सरल भाषा में इतनी सुन्दर भाव-व्यंजना हो जाने का एकमात्र कारण जीवन की गम्भीर अनुभूति ही थे| मैथिलीशरण गुप्त खड़ीबोली को हिन्दी कविता के क्षेत्र में प्रतिष्ठित करनेवाले समर्थ कवि के रूप में एकमात्र विशेष महत्त्व रखते हैं| सरल, शुद्ध, परिष्कृत खड़ीबोली में कविता करके इन्होंने ब्रजभाषा के स्थान पर उसे समर्थ काव्य-भाषा सिद्ध कर दिखाया| स्थान-स्थान पर लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग के कारण इनकी काव्य-भाषा और भी जीवन्त हो उठी है| प्राचीन एवं नवीन सभी प्रकार के अलंकारों का मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में ,भाव-सौंदर्यपूर्वक स्वाभाविक प्रयोग हुआ है| सभी प्रकार के प्रचलित छन्दों में इन्होंने काव्य-रचना की है|
इन्होंने नवीन चेतना और इसके विकसित होते हुए रूप के प्रति सजग थे| इसकी स्पष्ट झलक इनके काव्य में देखने को मिलती है| राष्ट्र की आत्मा को वाणी देने के कारण ये राष्ट्र-कवि कहलाये और आधुनिक हिन्दी काव्य की धारा के साथ विकास पथ पर चलते हुए युग-प्रतिनिधित्व कवि स्वीकार किये गये| इन्होंने राष्ट्र को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी| हिन्दी काव्य को शृंगार रस की दलदल से निकालकर उसमें राष्ट्रीय भावों की गंगा बहाने का श्रेय गुप्त जी को ही है| ये सही मायने में आधुनिक भारत के राष्ट्रकवि थे|
• कवि – मैथिलीशरण गुप्त
• जन्म – 3 अगस्त, सन् 1886 ई0
• जन्म स्थान – चिरगाँव (झाँसी)
• पिता – सेठ रामचरण गुप्त
• मुख्य रचनाएँ – साकेत, भारत-भारती, यशोधरा, द्वापर, पंचवटी, सिद्धराज
• शिक्षा – घर पर ही
• भाषा – खड़ी बोली, सरल, सुसंगठित, प्रसाद तथा ओजगुण से युक्त
• शैली – उपदेशात्मक शैली, प्रबन्धात्मक शैली, नीति शैली, विवरणात्मक शैली
• मृत्यु – 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई०
मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के अमर गायक, उद्भट प्रस्तोता और सामाजिक चेतना के प्रतिनिधि कवि थे| इन्हें राष्ट्रकवि होने का गौरव प्राप्त है| गुप्त जी खड़ी बोली के प्रधान कवि थे| इन्होंने खड़ी बोली को काव्य के अनुसार भी बनाया और जनरुचि को भी उसकी ओर अग्रसर किया| अपनी रचनाओं में मैथिलीशरण गुप्त जी ने खड़ी बोली के शुद्ध, परिष्कृत और संस्कृत के तत्सम बहुल रूप को अपनाया है| इनकी भाषा भावों के अनुरूप है तथा काव्य में अलंकारों का उचित प्रयोग हुए हैं| सादृश्यमूलक अलंकार इनके सर्वाधिक प्रिय अलंकार हैं| द्विवेदी युग की समस्त विशेषताओं को मैथिलीशरण गुप्त ने अपने साहित्य में वर्णन किया है| इनके साहित्य में प्रबन्धात्मक, विवरणात्मक, उपदेशात्मक, गीति तथा नाट्य शैली का प्रमुख रूप से प्रयोग किया गया है| मुक्तक एवं प्रबन्ध दोनों काव्य-शैलियों का इन्होंने सफल प्रयोग हुआ है| इनकी रचनाओं में छन्दों की विविधता दर्शनीय है| सभी प्रकार के प्रचलित छन्दों; जैसे- हरिगीतिका, वसन्ततिलका, मालिनी, घनाक्षरी, द्रुतविलम्बित आदि में इनकी रचनाएँ उपलब्ध हैं|
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में मैथिलीशरण गुप्त “निस्सन्देह हिन्दी भाषी जनता के प्रतिनिधि कवि कहे जा सकते हैं|”
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय थे| खड़ी बोली को काव्य के साँचे में ढालकर परिष्कृत करने का कौशल इन्होंने दिखाया, वह विचारणीय योग्य है| इन्होंने देश प्रेम की एकता को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी है। ये भारतीय संस्कृति के महान एवं परम वैष्णव होते हुए भी विश्व-एकता की भावना से ओत-प्रोत थे| हिंदी साहित्य में यह सच्चे मायने में इस देश के सच्चे राष्ट्रकवि थे।
इनके पिता का नाम प्रेम गुप्ता तथा माता का नाम काशीबाई गुप्ता था|
साकेत मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रमुख रचना है|
मेघनाथ वध मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रमुख रचना है|
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